स्वामी
मृत्युंजय तीर्थ
महाराज
बचपन
आपका
जन्म 25 अक्टूबर
1936 को बादामी बाग
लाहौर (पश्चिमी
पाकिस्तान) में
हुआ था. आपके पिता
पंडित हरी राम
शर्मा बड़े धार्मिक
विचारों के थे.
वह पढ़े लिखे अकाउंटेंट
थे और सर्सर्गोधा
जिले के रहने वाले
थे. आपकी माताजी,
दयावंती, बहुत
ही धार्मिक विचारों
वाली महिला थीं.
जैसा उनका नाम
था वैसा ही उनका
गुण था. वे बिलकुल
दया की मूर्ति
थीं.
आपके
माता पिता के जो
भी औलाद होती वह
मर जाया करती थी.
दोनों बड़े परेशान
थे. किसी संत ने
आपके घर आकार बताया
कि तुम्हारे घर
एक लड़का बुधवार
के दिन होगा. जो
लोग उनकी औलाद
पर जादू-टोना करते
थे, उनके नाम बताकर
कहा कि इनसे सतर्क
रहना, इनको घर पर
ना आने देना, और
ना ही इनकी दी हुई
चीज बच्चे को खाने
देना.
इस तरह
आपका जन्म बुधवार
को हुआ. स्वामीजी
कि बचपन से ही धार्मिक
कार्यों में प्रवर्ती
थी. उन्होंने मुझे
बताया कि वह छठी
कक्षा से ही रोज
प्रातः ज्योत जलाकर
आरती किया करते
थे. इसका एक कारण
यह भी था कि जब कभी
वह ज्योत नहीं
जलाते थे तो रात
को ऐसा लगता था
कि कोई उन्हें
चारपाई समेत उठाकर
कुए में फेंक रहा
है. और वह कुए में
डूब रहे हैं. बस
इससे वह फिर रोज
सुबह ज्योत जलना
शुरू कर देते थे.
शिक्षा
एवं व्यवसाय
15 अगस्त
1947 को जब हिंदुस्तान
का बटवारा हुआ
तो वह पाकिस्तान
से हिंदुस्तान
आ गए. स्वामीजी
30 अगस्त को हिंदुस्तान
पहुंचे. वह पहले
करतारपुर में एक
रिश्तेदार के घर
पर ठहरे और बाद
में अमृतसर (पंजाब)
में रहने लगे. 1952 में
आपने पंजाब युनिवेर्सिटी
से मट्रिक की परीक्षा
पास की. उसके बाद
सन १९५३ में आप
सरकारी सेवा में
बतौर लिपिक (क्लर्क)
लग गए. 41 साल 2 महीने
की सरकारी सेवा
के बाद आप 31 अक्टोबर
1994 में सेवा निवृत
हो गए. सरकारी नौकरी
दे दौरान ही आपने
हिंदी विषय में
स्नातक की उपाधि
अर्जित की. आपकी
संगीत में अत्यन्त
रूचि थी. आपने गन्धर्व
संगीत महाविद्यालय,
बम्बई से संगीत
विशारद तथा शास्त्रीय
संगीत में डिप्लोमा
किया. संगीत में
रूचि के चलते ही
आपने 1969 से 1999 तक तीस
साल आल इण्डिया
रेडियो, जालंधर
के साथ बतौर कैजुअल
आर्टिस्ट काम किया.
आप भजन, शब्द-गीत
और गज़ल का प्रोग्राम
देते थे. संगीत
के आलावा स्वामीजी
की नाटक में भी
रूचि थी, आपने सन
1960 से 1972 तब अमृतसर
नाटक कला केंद्र
पर बतौर ड्रामा
आर्टिस्ट काम किया.
आपने चडीगढ़, पटियाला,
बम्बई तथा अन्य
कई शहरों में आपने
नाटक का प्रदर्शन
किया.
अध्यात्म
पथ
स्वामीजी
की मंत्र दीक्षा
परम पूज्य प्रातः
स्मरणीय ब्रह्मलीन
श्री स्वामी शिवोम
तीर्थ जी के द्वारा
अक्टूबर १९७१ में
नंगल में हुई. तत्पश्चात
सन 1972 में उन्ही के
द्वारा देवास में
शक्तिपात की दीक्षा
की गयी.
उल्लेखनीय
है की आपकी शक्तिपात
की दीक्षा १९७२
में 36 साल की उम्र
में हुई तथा 8 मई
सन 2002 में 72 साल की
उम्र में आपको
डंडी सन्यासी की
दीक्षा मिली.
नौकरी
से सेवा निवृति
के बाद आप ब्रह्मलीन
स्वामी शिवोम तीर्थ
महाराज की सेवा
में रहे. आपको संगीत
का शौक तो था थी.
महाराज जो जो भजन
लिखा करते थे उन्हें
आप श्रधालुओं को
सुनकर भाव विभोर
कर देते. आप श्री
महाराजजी के साथ
1995 से 1998 तक देवास, मुंबई
आदि कई स्थानों
पर रहे. बाद में
जब महाराज जी ने
एजंट साध लिया
आप अमृतसर चले
गए और वाहन चिन्मय
मिशन की कार्तिक
मेले में दुसरे
महात्माओं के साथ
भगवत कथाओं के
प्रोग्राम पर जाते
और भजन कार्यक्रम
प्रस्तुत करते.
साथ ही इन्होने
संगीत अकादमी चलाकर
बच्चो को शास्त्रीय
संगीत की तालीम
देनी शुरू कर दी.
इनकी अकादमी प्राचीन
कला केन्द्र, चंडीगढ़
से पंजीकृत है.
आजकल अकादमी को
इनका पुत्र राजीव
चलाता है. राजीव
शास्त्रीय संगीत,
गायन तथा तबला
में प्रवीण है.
इन्होने मानस प्रचार
मंडल के नाम पर
एक और संस्था चलाई.
यह संस्था घर घर
जाकर सुन्दर कांड
का निशुल्क पाठ
करती है.
आद्यात्मिक
अनुभव
स्वामी
जी ने अपपने अनुभवों
के बारे में बताते
हुए ये कहा की जब
वह गुरु की तलाश
में थे और पठानकोट
में कार्यरत थे
और वहाँ अकेले
रहते थे. तब ये ज़मीन
पे सोते थे. इन्हें
वाहन स्वयम ही
1970 में गुरु महाराज
के दर्शन हो गए.
इन्हें एक महापुरुष
के दर्शन हुए. जब
इन्होने पहली बार
स्वामी शिवोम तीर्थ
महाराज जी को देखा
तो ये तुरंत ही
पहचान गए की ये
तो वही महापुरुष
हैं जिन्हीने स्वपन
में दर्शन दिए
थे.
ये 1972
में देवास में
शक्तिपात की दीक्षा
लेकर घर वापस चले
गए. जब ये घर वापस
जा रहे थे तो इन्हें
रास्ते में गाड़ी
में एक अनुभव हुआ
कि शक्ति ने इन्हें
लपेट लिया है और
ऊपर उठा रही है.
जबकि वास्तव में
ये सीट पर बैठे
किताब पढ़ रहे थे.
इस दर से कि कहीं
में गिर ना जाओं,
इन्होने अपने आपको
शक्ति के हवाले
कर दिया. इन्होने
पाया कि शक्तिं
ने इन्हें उठाकर
उपर वाली इनकी
बर्थ पे लिटा दिया.
जहाँ पर ये सोये
हुए थे.
एक बार
बरसात के मौसम
में आधी रात के
समय ये घर कि छत
पर एक बेंच पर लेते
हुए थे. इन्हें
महसूस हुआ कि इनके
मूलाधार में बहुत
पीड़ा हुई और उसके
बाद इन्होने अप्पने
आप को आकाश में
उड़ता हुआ महसूस
किया. उस समय इनके
गुरु महाराज अमेरिका
गए हुए थे, उड़ते
हुए इन्हें उनके
दर्शन हुए तो इन्होने
पूछा कि मुझे कहाँ
उदा कर ले जाते
हो. कुछ उत्तर ना
मिलने पर इन्होने
सोचा कि जब गुरु
महाराज ही इन्हें
उडाकर ले जा रहे
हैं तो अच्छा ही
होगा. इतना सोचना
था कि जैसे बच्चों
के खेलने के लिए
पार्क में एक खेल
बना होता है जिसमे
एअक तरफ से सीडी
पर चढ़ते हैं और
दूसरी तरफ से फिसल
कर निचे आते हैं,
इसी तरह कि एक सीडी
इन्हें आकाश में
दिखाई दी. शक्नी
ने इन्हें उस सीडी
पर छोड़ दिया. उसपर
फिसलकर ये जहाँ
लेते थे वहीँ वापस
आ गए.
आजकल
आप ऋषिकेश में
योग श्री पीठ आश्रम
में परम पूज्य
गुरुदेव स्वामी
श्री गोविंदानंद
तीर्थ जी महाराज
के उत्तराधिकारी
के रूप में निवास
करते हैं. स्वामी
जी बहुत ही प्रसन्नचित
स्वाभाव के व्यक्ति
है. अहम तो इनको
छू तक नहीं गया
है. आश्रम में स्वामीजी
साधकों के कमरे
में जाकर उनके
साथ यूँ ही आम साधकों
कि तरह बैठ कर अध्यात्म
चर्चा करते हैं.